काश.. तुम होते…… मान्य.कांशीरामजी को विनम्र अभिवादन !

बातमी शेअर करा.

आज 15 मार्च,15 मार्च 2025 ! अगर आज कांशीरामजी होते,तो क्या होता ? 90 किलो का केक कटता?, 90 तोफो की सलामी दी जाती?, 90 किलो का सोनेका हार उन्हे पहनाया जाता?, क्या हुआ रहता? 

जरा सोचो,अब सोच समजकर चलो। आज मान.बहन मायावतीजी के नेतृत्व मे चल रही बसपा,बोधिरत्न बालासाहेब अम्बेडकरजी के नेतृत्व मे चल रही वंचित बहुजन आघाडी और भाई चंद्रशेखर आजादजी के नेतृत्ववाली आसपा (भीम आर्मी) यह अम्बेडकरवादी तीनो प्रमुख दल एक दुसरे को खत्म करके खूद निर्विवाद सामने नही आ सकते। कम से कम आगे के 10 साल मे तो ये मुमकिन नही है। मतलब हर राज्य मे अम्बेडकरवादी जनता दो से तीन दलो मे विभाजीत रहेगी। सत्ता मे बैठने की बात तो दूर रही,वैसे सोचना भी मूर्खता लगेगी। और यही 10 साल बडे महत्वपूर्ण रहेंगे। rss – bjp हिंदुराष्ट्र बनाने मे अंतिम पायदान पर पहूंची रही होंगी। काँग्रेस के युवराज विदेश मे कही आराम फरमा रहे होंगे! काँग्रेस के बचे खुचे सभी क्षत्रप भाजपवासी हुए रहेंगे। काँग्रेस के बंधुआ मजदूर समजे जानेवाले दलित मुस्लिम ठगा महसूस कर रहे होंगे। संविधान को नामधारी कर दिया रहेगा।        काश…आज कांशीरामजी हनही ! तो भाजप – काँग्रेस आघाडी करके भी सत्ता से दूर हो जाते। और क्षेत्रीय दलो के साथ मिलकर कांशीरामजी और बसपा सत्तासीन होते। भाजप – rss जनता के सामने नंग -धडंग हो गये होते। 

‘शासनकर्ती जमात बनो’ यह बाबासाहेब का मुलमंत्र जिन्हें समज मे आया वे आज खून के ऑसू रो रहे होंगे। शासनकर्ती जमात बनने की बात तो दूर,अब वजूद बचाने के लाले पड गये मालूम हो रहा है। कांशीरामजीने शासन लाकर बताया, यु.पी.तक ही क्यो ना हो, लेकिन अपनी हयात मे बहन मायावतीजी को तीन बार मुख्यमंत्री बनाया। देशभर के बहुजनोकी उम्मीदे जग गयी थी। देर सवेर देश मे भी सता आ सकती, ऐसा विश्वास पैदा हुआ था। मान्य. कांशीरामजी अगर और दस साल जिते तो निश्चितही केंद्र मे बहुजनोकी तगडी भागीदारी होती, ज्यादातर राज्यो की सत्ता मे बहुजनो की अहम हिस्सेदारी होती। खैर, जो भी हुआ होता, लेकिन देशभर मे हम संघटित हो गये होते। बाबासाहेब के पास सत्ता नही थी लेकिन संघटित समाज की ताकद थी !     आज आंबेडकरवादियो की यह संघटित ताकद नष्ट हो गयी है। आज उत्तर भारत एवं मध्य भारत मे यह बिखराव जादा दिख रहा है। हिंदी भाषिक राज्यो मे बसप के सामने भीम आर्मी ने आव्हान खडा कर दिया है।

 इस परिस्थिती को बोधिरत्न बालासाहेब आंबेडकरजी ने पहलेही भांप लिया था। उन्होने पिछले 7 – 8 साल से देश भर के आंबेडकरवादी प्रमुख नेताओ को एक मंच पर लाने का प्रयास शुरु किया था। पहला प्रयास दिल्ली मे,रोहित वेमुल्ला प्रकरण मे किया था, दुसरा प्रयास NRC के खिलाप किया था। 

बाबासाहेब के पौत्र,एड.प्रकाश अंबेडकरजी,आज जिनके सामने नीतिमत्ता एवं दूरदृष्टी मे देश का कोई भी नेता टिक नही सकता,वे बहन मायावती जी,भाई चंद्रशेखर आझाद इन्हें एक मंच पर आकर,हाथ मे हाथ मिलाकर, समाज को समाज हित मे संघटित करनेका आवाहन कर रहे है यह बडी बात है। ऐसा प्रयास 1995 मे भी बालासाहेबजीने किया था। मान्य.कांशीराम जी के साथ मिलकर महाराष्ट्र मे बहुजन श्रमिक समिती नाम की चुनावी आघाडी बनाई थी,उस वक्त माहोल बालासाहेबजी के पक्ष मे था,क्या हुआ पता नही,लेकिन कांशीरामजी इस आघाडी मे नही रहे, बालासाहेबजी का ऐन चुनावी माहोल मे अपघात हुआ था, वे चुनाव परिणाम आने तक दवाखाने मे थे,उस वक्त भारिप – बहुजन महासंघ के 52 प्रत्याशी दुसरे नंबरपर पराजित हुए, 9 प्रत्याशी एक हजार के नीचे के अंतर से हार गये थे। उस वक्त बसपा ने भारिप के 12 – 16  प्रत्याशी को गिराया था। यह दुःखद था फिर भी बालासाहेब कांशीरामजी के खिलाप नही गये,उनके देहांत के बाद,उनके माताजी से मिलकर आये। अभी अभी टी.वी.पत्रकार दिबांग की मुलाखात मे बडे चॅनेल पर,बालासाहेबजी ने कांशीरामजी की सराहना की थी।  उनके प्रयास समाज को एकत्रित करनेके रहे,सफलता आगे मिलेगी।      अगर आज मान्य.कांशीरामजी होते तो यह प्रयास की आवश्यकता नही होती।  आज कांशीरामजी के जयंती दिन पर हम एक दुसरे दल को खत्म करने की  फालतुगिरी नही करते हुये, खतरे की आहट देखकर एकत्रित होना जरुरी है।

बंडू उर्फ नागवंश नगराळे,९८५०३५१५२४,संस्थापक अध्यक्ष,बहुजन हितकारिणी सभा चंद्रपूर.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *